Saturday, February 19, 2011

गार्हण्याचे अभंग

पुन्हा ये आषाढी| पुन्हा आलो भेटी|
नम्र जगजेठी| तुझ्या पायी||१

पुन्हा याही वर्षी| गार्हाण्यांची यादी|
दारी हा फिर्यादी| पुन्हा उभा| |२

तुझिया कृपेने| लाभे आम्हा अन्न|
पिकविता खिन्न| शेतकरी| |३

फास विष जया| झालाहे आसरा|
लाज न रे जरा| मंत्रालय| | ४

चेक द्यावा त्यांनी| बोउंस हो तोही|
का रे पत नाही| शासनाची| |५

दरोडे मायान्दल| चोर सोकावले|
जन धास्तावले| अहोरात्र| | ६

पाऊस रे तैसा| समृद्धीचा दाता|
परी करी घाता| जागोजाग| |७

शासकांत पाणी| काहीच नुरले|
शहर तुंबले| पर्वा कुणा| |८

जळाची संकटे| नित्यनेमे येती|
उपायही जाती| पाण्यामध्ये| |९

पोरांनी आमुच्या| शिकावे का सांगा|
अडमिशनचा वांधा| कोण सोडी| |१०

कश्तून खर्चून| टक्के मिळवावे|
टोणपे का खावे| त्यांनी उगा| | ११

शिक्षणाचे खाते| अडाण्याचा गाडा|
आम्ही का तो ओढा| सांग बापा| |१२

वाढले ते डबे| गाड्याही लांबल्या|
तरीही मागल्या| ये रे माझ्या| | १३

वाढत्या गर्दीला| पुरते न काही|
दूरदृष्टी नाही| कोण लेका| |१४

विकार बळावे| रोग हो मुजोर|
डॉक्टरही चोर| कुठे कुठे| |१५

ज्यांनी वाचवावे| त्यांनीच मारावे|
पैसे प्राण घ्यावे| काय न्याय| |१६

विनोदही एक| जाता जाता ऐका|
दुजा कुणा नका| सांगू कधी| | १७

हिंदुस्थान देश| गरीबांचा म्हणे|
श्रीमंतीचे नाणे| खन्न वाजे| |१८

दिसामासामाजी| वाढते संपत्ती|
लक्ष लक्ष कोटी| अब्जावधी| |१९

चाळी सपाटती| टोवर ठाकले
फ्लाट भाव गेले| आकाशाला| |२०

मोल मल्टीप्लेक्स| रिसोर्ट मौजेचे|
मुक्तपणे नाचे| चैन-बाला| |२१

जरी घरी दारी| जेमतेम स्थिती|
चाले खादी-पिदी| मनः पुत| |२२

धनाध्यांचा छंद| सामान्यांना मोही|
डुंबत त्या डोही| उडा उडी| | २३

माउस इवला| गरुड त्या केला|
जो तो झेपावला| फोरेनी| |२४

जेथे माया मोठी| तेथे घेती धाव|
स्वदेशीचा भाव| बारा आणे| | २५

प्रश्न भोळ्या मना| लक्षणे हि कैंची|
होईल का गोची| माणसाची| | २६

ऐशी किती दुखे| सांगू ब विठला|
ठाउकी तुलाही| नक्कीच ना| |२७

तरी का पाहशी| अंत बा भक्तांचा|
सुचे का न साचा| मार्ग तुला| | २८

आयता आषाढीला| जीव शिव भेटे|
म्हणून साकडे| दयावंत| | २९

बघ तुला काही| दिसतो का मार्ग|
अन्यथा हे भोग| साहेन बा| |३०

जरी तुला भारी इतुके हे ओझे|
वाहेन मी माझे| सोपा म्हणे| | ३१

सौजन्य :- लेखक (व)संत सोपारकर.  मार्मिक अंक ४६, वर्ष ५१.

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